कापीराइट गजल
आज भी तेरे शहर में यूं घूमते हैं हम
इसीलिए तो ये पता तेरा पूछते हैं हम
जुदा जिसकी खुशबू वो गुलाब हो तुम
उसी गुलाब की खुशबू को ढ़ूंढ़ते हैं हम
मचाई है जिस ने मेरे दिल में हलचल
उसी हंसी चेहरे को अब ढ़ूंढ़ते हैं हम
तेरे ही लिए शहर में आ गए हैं हम
तुझे कस्तूरी की तरह से ढूंढ़ते हैं हम
पता ठिकाना तेरा हमें कहीं मिल जाए
बार-बार सभी से यही पूछते हैं हम
एक बार मुझे तुम जो मिल जाओ यादव
बता देते इन सबको क्यूं पूछते हैं हम
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है