चांद, आज, निकला नहीं है
लगता है, चेहरा, उनका खिला नहीं है
घटाओं, जरा,थम के बरसना
जुल्फें मेहबूबा का, अभी बिखरा नही है
आज, कोई गीत, प्यारी ही नहीं लगी
घुंघरू उनकी पायल की,बजा नहीं है
रात लंबी कटी, सुबह जल्दी हुआ नहीं
वो चादर नहीं खींची, नींद खुला नहीं है
उनकी आदतों ने, हमारी आदत बिगाड़ दी है
सुबह तो हो गयी,पर, सूरज अब तक खिला नहीं है।।
सर्वाधिकार अधीन है