तुमसे पहले,
मैं एक अंधे पथिक की तरह
दर-बदर भटकता रहा।
हर मोड़, हर गली
मेरे कदमों को
किसी अनजान खाई की ओर
खींच कर ले जाती थी।
मेरे मन की प्यास
मृग-तृष्णा बनकर
रेत पर पानी की लकीर खींचती,
और मैं—
हर बार उस लकीर के पीछे भागकर
अपने ही साये से हार जाता।
मेरी सोच,
हवा में बवंडर की तरह
अपने ही घेरे बनाती रही।
हर चक्रव्यूह
मुझे और भीतर खींच लेता,
और मैं लौटने का रास्ता भूल जाता।
तुमसे पहले,
मेरे भीतर की रात
बिना चाँद की थी—
जहाँ तारे भी
जैसे रास्ता दिखाने से
इंकार कर चुके थे।
पर जब तुम मिले—
मेरी आँखों में
पहली बार रोशनी उतरी।
जैसे किसी अंधी रात ने
अचानक भोर का आँचल ओढ़ लिया हो।
जैसे सर्दी की ठिठुरन में
पहली धूप उतर आए।
तुमसे मिलने के बाद
मेरे मन की सारी तरंगें
मौन हो गयीं—
जैसे तूफ़ान थमते ही
झील का पानी
आईना बन जाता है।
अब,
मेरी सोच को
एक मंज़िल मिल गयी है,
मेरे कदमों को
एक दिशा।
हर राह में—
अब तेरे घर का इशारा है,
हर ठहराव में—
तेरी याद का दीपक।
तुम मिले—
तो जाना मैंने,
प्रेम कोई तलाश नहीं,
वह तो वह सूरज है
जो बंद पलकों के भीतर भी
उषा की किरणें भर देता है।
-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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