एक दोपहर की बात खो गया छाता मेरा।
आँसू बहाते घर को आया ये जिस्म मेरा।।
दो कदम चल कर रुक गया खुद-ब-खुद।
हिम्मत जबाव दे रही व्यथित था मन मेरा।।
तभी माँ को देख कर फ़ूट कर रोने लगा।
माँ के पूछने पर हिचकियाँ भरा गला मेरा।।
इशारे मे जान पाना आँसू पौंछ समझाना।
चिंता न कर 'उपदेश' नया दूँगी छाता तेरा।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद