तू कहीं नहीं था,
पर हर दरवाज़े पर तेरा नाम था—
जिसे मैंने अपने लहू से पुकारा।
मैंने रोटियाँ नहीं माँगीं,
घर नहीं माँगा,
सिर्फ़ तुझसे तेरा पता माँगा—
पर हर बार
तेरा नाम हवा में फिसल गया,
जैसे कोई कविता अधूरी रह गई हो।
लोग कहते हैं,
प्रेम में बिछड़ना भी भक्ति है।
तो मैंने इस दुनिया के हर मंदिर में
अपना दिल चढ़ा दिया,
पर पुजारी ने पूछा—
“देवता कौन है?”
और मैं… चुप रह गया।
तू कोई पंथ नहीं था,
तू कोई मूर्ति नहीं था,
तू तो वो खामोश धड़कन था
जो हर शोर में गुम हो जाती थी।
मैं धूप में पिघलता रहा,
तेरी परछाईं बनने को,
पर तू शाम में था—
और मैं सुबह से ही जलता आया था।
कभी लगा
तू किसी और जन्म की कविता है,
जो इस जन्म की ज़ुबान में
लिखी ही नहीं जा सकती।
अब…
तेरे नाम की राख
मैं अपनी पलकों में रखता हूँ—
कि जब नींद आए,
तो शायद कोई सपना तेरा चेहरा पहन ले।
-इक़बाल सिंह “राशा”
मानिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड,

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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