आंखों के अश्कमें वो नमी न थी
जितनी वेदना अल्फ़ाज़ों की आहमें थी !!
लिखावट की दास्तां अधूरी रही
शब्दों की वाणी को वो मंजूर नहीं !!
कलम तो न टूटी या न छूटी थी
पर अंकुश लगा तो वो बेहद रोई थी !!
अकेले अक्षर चले मंथन की गति थी
पर वाक्य रचनामें तड़प कागज़ की थी !!
दोष शायद भाग्य का या कलम का था
बिन सोंचे नादानी की हरकत जो थी !!