कविता : टूटा चप्पल....
सड़क किनारे
कोई आ रहे थे
वहां पर कोई
फिर जा रहे थे
मैं भी सड़क किनारे
कहीं पर जा रहा था
वहीं मेरा एक चप्पल टूटा
मुझे समझ नहीं आ रहा था
अब एक पैर में चप्पल
है एक चप्पल टूट गया
इस वजह से मेरा दिल
अन्दर ही अन्दर रूठ गया
वहां दूर दूर तक
न झोपड़ी न मकान है
न चप्पल का शोरूम
न चप्पल की दुकान है
करूं तो क्या करूं ?
मैं हैरान हूं
हैरान क्या बहुत ही
परेशान हूं
सड़क पर चलूं तो एक पैर में
चप्पल दूसरे में नहीं है
मुझे वहां पर दिक्कत
सब से बड़ी यही है
एक पैर में चप्पल पहन
चलूं लोग देखते रहेंगे
दोनों पैर बगैर चप्पल चलूं
फिर लोग भिखारी कहेंगे
ये सोच सोच कर
न हंस रहा न रो रहा हूं
वहीं सड़क किनारे बैठ
बैठ कर पागल हो रहा हूं
वहीं सड़क किनारे बैठ
बैठ कर पागल हो रहा हूं.......