ईमान - डॉ एच सी विपिन कुमार जैन
"विख्यात "
ईमान का पता मालूम नहीं था
कुछ लोगों से पूछा
उस तरफ बताया
हम चल दिए
थोड़ा ही चले थे
कि बदबू आ रही थी
देखा कि घासफूस की झोपड़ी
सामने नजर आ रही थी
हम घुसे
कि वह ध्यान मग्न थे
कब खुले आंख उनकी
हम इस प्रतीक्षा में थे
उन्हें आभास हुआ
मेरा ख्याल हुआ
वह बोले
तुम इसका क्या करोगे
लेकर इसे क्या मरोगे
दुनिया कहां से कहां पहुंच रही है
भ्रष्टाचार की सीढ़ी पर चढ़कर
आसमान को छू रही है
नहीं हमने कहा
यही एक रास्ता है
जीवन संवारने का
कांटे उठाकर
राहों में फूल बिछाने का
ईमान की आंखों में आंसू थे
लोगों ने मुझे उठाकर
यहां फेंक दिया
शायद जरूरत नहीं मेरी
मैं भी यही सोच लिया
लेकिन नहीं
फिर भी उन सब को छोड़कर
मेरे पास चले आए
उनके लिए
जो रास्ता अपना ढूंढ ना पाए
चलो मैं
तुम्हारे साथ हूं
मेहनत और लग्न में
एक विश्वास हूं