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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

घर आज बंगले हो गए

घर आज बँगले बन गए
शायद अब महल बनने लगे
एक कमरे में भी खुश रहते थे
हसते थे गुनगुनाते थे
हर दुख दर्द मिल कर बाँटते थे
अब कमरे बढ़ते चले गए
सब में बटते चले गए
आवाज़ भी कानों को सुनाई नहीं देती
अपने अपनों को दिखना ही बन्द होने लगे
घर आज बंगले हो गए
बंगले अब महल बनने लगे…
वन्दना सूद




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

श्रेयसी said

Sahi kaha aapne aur ek ghar me rah kar bhi mobile se baaten karne lage 🙏🙏

वन्दना सूद replied

बिल्कुल सही कहा आपने कि एक ही घर में रहते हुए भी आपस में फ़ोन से बात करते हैं और फिर कहते हैं कि आजकल emotions नहीं बचे

Lekhram Yadav said

बहुत खूबसूरती से आधुनिक समाज का चेहरा बेनकाब किया आपने वन्दना जी, आपको सादर नमस्कार, परन्तु एक बार यह बताओ कि आप कहां गायब थी और हमारी रचनाओं से इतनी दूरी क्यों, आपकी प्रतिक्रिया के बिना सब कुछ अधूरा सा लगता है, आज आपकी प्रतिक्रिया पढ़ कर ऐसा लगा जैसे आप हमारे करीब लौट आई हैं।

वन्दना सूद replied

आपकी रचनाओं से दूर कोई कैसे रह सकता है sir 😊 Actually हमारी transfer हो गई इसलिए shifting में busy थे । बहुत अच्छा लगा कि आपने हमारी अनुपस्थिति को महसूस किया 🙏

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