घर आज बँगले बन गए
शायद अब महल बनने लगे
एक कमरे में भी खुश रहते थे
हसते थे गुनगुनाते थे
हर दुख दर्द मिल कर बाँटते थे
अब कमरे बढ़ते चले गए
सब में बटते चले गए
आवाज़ भी कानों को सुनाई नहीं देती
अपने अपनों को दिखना ही बन्द होने लगे
घर आज बंगले हो गए
बंगले अब महल बनने लगे…
वन्दना सूद