तानों की पीड़ा का दर्द आँखों से बह निकला।
निभाना चाहा पर जुबान से कटु-शब्द फिसला।।
मतलबी दुनिया के कुछ संबंधो से दिल जलता।
सहारा बन ना सके जिरहबाजी में दिन निकला।।
करूँ अब बात किस मुँह से हिम्मत की कमजोरी।
उनके कहने पर कदम उठाते ही कदम फिसला।।
विषयो का विष पीकर भावुक हो गया जब मन।
अंतर्द्वंद में प़ड कर समझाने भर से दिल पिघला।।
गलती किसी की और माफ़ी मांगी किसी और ने।
गेहूँ के साथ में घुन के पिसते ही 'उपदेश' उछला।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद