याद करके मुस्कुराता हूँ उस लम्हे को
कॉलोनी के अन्दर की सड़क
कुछ कदम चलने पर थी पुलिया
मन में किसके क्या इरादा मैं क्या जानूँ?
साथ उसका मगर बेचैनी अन्दर मेरे
कभी गर्दन घुमाकर देखूँ उसका चेहरा
साथ चलते हुए दो आँखे मेरे पीछे
सतत देख रही क्या? मैं क्या जानूँ?
इसी उधेड-बुन में आ गई पुलिया
कान बहरे से हो गये बस आँखे देखती
किसने क्या कहा किसने क्या सुना
जबाव किस तरह निकले मैं क्या जानूँ?
महसूस जो किया वह आज भी सलामत
पुलिया पर बैठने का सुख अपार
मेरी यादगार बन गया 'उपदेश' वह लम्हा
उसको कैसा लगा मैं क्या जानूँ?
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद