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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

भारत की महफ़िल

ये ज़मीं है सब्र की, ये आग नहीं बुझेगी हुज़ूर, ये सनातन है, यहाँ नफ़रत की ख़ेमेदारी नहीं चलेगी।

तुम ज़हर बोते रहे, हम ज्ञान सींचते रहे सदियों से, ये गंगा है, यहाँ विचारों की गंदगी नहीं टिकेगी।

वो अफ़सोस करते हैं जो नफ़रत की खेती करते हैं हमेशा, ये भारत है, यहाँ प्रेम से हारना भी जीत कहलाती है।

फ़लसफ़ा हथियारों से नहीं, अस्ल में किताबों से हारा है, जिसे तर्क से शर्त थी, उसका क़िस्सा भी किनारा है।

तुम दंगे कराओगे, हम इंसानियत बाँट देंगे हर बार, ये धरती है बुद्ध की, यहाँ क्रोध की तौक़ीर नहीं।

आतंक की आँख में देखो, वो डर से ख़ाली नहीं है, उसे अंजाम मालूम है, मगर तर्क से ख़ाली नहीं है।

सियासत की चालें थीं, धर्म तो बस मोहरा था, जो जाल बिछा रहे थे, वो खुद ही फँसकर खड़े हैं।

हमें लड़ाने की कोशिश में, वो ख़ुद बिखर गए हैं सदियों से, ये एकता ही राज़ है, ये क़िला कभी कमज़ोर नहीं हुआ।

वो जो वतन तोड़ना चाहते थे, उनका काम ही बाक़ी नहीं, हमने सब्र किया, मगर अब वहम में रहना लाज़मी नहीं।

इमरान हो या शिन की सोच, अवाम अब जाग गया है, बाहरी निर्देशों पर चलाने का वहम अब टूट गया है।

डॉलर के फैसलों से हमारी नींद नहीं टूटती, हम फ़कीरों के देश हैं, हमें लालच से ख़रीदना मुश्किल है।

अरे ज़रूर कोशिश कीजिए, हर वहम को तोड़ा जाएगा, मगर सरहद पे आग लगाने से तुम्हारा घर भी जलेगा।

तुम ज़ुबान बदलते हो, हम सत्य नहीं बदलते कभी, तुम्हारी नज़र में फ़ायदा है, हमारी नज़र में इंसानियत है।

सत्य को आग दिखाओगे, तो लौ तेज़ ही होगी यहां, ये हिंदुस्तान है, यहाँ हर चुनौती की जी होगी।

वो जो देश तोड़ना चाहते थे, उनका काम ही बाक़ी नहीं, हमने सब्र किया, मगर अब वहम में रहना लाज़मी नहीं।

सनातन सीधा नहीं, अजगर की तरह लिपटा है सदियों से, जो तोड़ने आएगा, वो ख़ुद ही जकड़ा जाएगा।

हम ग़लती करें सौ बार, मगर ग़द्दारी नहीं सीखेंगे, तुम्हारा खेल ही झूठ पे टिका है, तुम कभी नफ़ा नहीं देखोगे।

तारीख़ गवाह है, जो धर्म को ढाल बनाते हैं, उनके नाम बस नफ़रत के अध्याय में आते हैं।

ज़रा पलट कर देखो, तुम्हारा घर भी जल रहा है धीरे-धीरे, दूसरों को तकलीफ़ देना ईमानदारी का इनाम नहीं है।

सुन लो दुनिया वालों, यह वतन प्रेम से चलता है, जो आग बोएगा, वो ख़ुद ही उसमें पिघलता है।




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