👉बह्र - बहर-ए-हज़ज मुसम्मन अख़रब
👉 वज़्न - 221 1222 221 1222
👉 अरकान - मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
वापिस वो नहीं आता जो तीर निकल जाए
तू बात न कर ऐसी दिल गैर का जल जाए
कमज़ोर को ताकत का मत रोब दिखाया कर
इसका है भरोसा क्या कब वक़्त बदल जाए
इंसान ज़माने में वो हार नहीं सकता
उम्मीद न जो छोड़े जो गिर के संभल जाए
इंसान मोहब्बत से नफ़रत को हराए गर
रौशन हो जहाँ सारा दुनिया ही बदल जाए
है हुस्न क़यामत सा आँखों में नशा तेरी
देखे जो तुम्हें कुछ पल वो पल में मचल जाए
करना है तुझे जो कल वो आज ही तू कर ले
ऐसा न हो मुट्ठी से कल वक़्त फिसल जाए
ग़म और ख़ुशी दोनों इस ज़ीस्त का हिस्सा हैं
इंसान मगर चाहे ग़म आए तो टल जाए
ए 'शाद' ज़रा समझो चाहत में ज़ियादा की
जो पास है हाथों से वो भी न निकल जाए
©विवेक'शाद'

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




