मुर्दों के शहर में, एक उम्मीद की किरण जागी है।
आत्माराम उड़े की ,अब आत्मा जागी है।
घोटालों के बादशाह अंकीलाल,
फर्जी खातों को असल दिखाएं इंकी लाल।
अपने ही जाल में, फंस गए डंकी लाल।
मगर काकी ताई खोल रही पोल।
गायब काग़ज़तों में, मेरा नहीं कोई रोल।
मुखिया का कमीशन तय है,
सरकारी मौहर का विलय है।
कहत मूर्खानंद
प्रभात का आनंद लीजिए।