मन को लाया हूँ समझाकर,
जीत न होगी गाल बजाकर,
क्रोध हानिकारक होता है,
रखना पड़ता है फुसलाकर,
बच्चों सा जिद पे अड़ जाता,
करना शांत उसे बहलाकर,
अहसासों में कमी देखकर,
करना पड़ता प्रेम जताकर,
ओझल हुए सितारे जग से,
गया न कोई पता बताकर,
सच्चा दोस्त साथ ही रहता,
देखो तुम इसको अपनाकर,
अच्छा-बुरा मिले किस्मत से,
आते लोग भाग्य लिखवाकर,
कर सत्कर्म जगत में 'गुंजन',
पायेगा दुःख-दर्द सताकर,
कवि - श्री शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'