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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

कैसे भूल जाऊँ अपने फ़र्ज को

कैसे भूल जाऊँ अपने फ़र्ज़ को
माँ हूँ मैं
जानती हूँ ,समझती हूँ और एहसास भी है मुझे
अपने बच्चे के मन की हर व्यथा का
मेरे हाथ पर सिर रखना है उसे
मेरी गोद में सोने की चाह है उसकी
थक जाता है वह
कभी कभी ज़िन्दगी की रफ़्तार के साथ दौड़ते दौड़ते..

माँ हूँ मैं
कैसे कह दूँ
आराम कर ले ,थक गया है तो थोड़ी देर ठहर जा
कैसे कह दूँ कि
समय के साथ चलना छोड़ दे
ज़िम्मेदारियों से मुँह मोड़ ले ..

माँ हूँ मैं
क्या फ़र्ज़ भूल जाऊँ
उसके जीवन को सही राह दिखाने का
हर बढ़ते कदम पर उसका होंसला बढ़ाने का
उसके निराश चेहरे पर जीत की उम्मीद दिलाने का
कैसे भूल जाऊँ
अपने तजुर्बों से उसकी हर राह को सफल बनाने को कैसे भूल जाऊँ ..
वन्दना सूद




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (5)

+

ताज मोहम्मद said

बहुत ही मार्मिक रचना। अति सुन्दर प्रस्तुति। आपको हमारा 🙏 सलाम।

वन्दना सूद replied

शुक्रिया sir🙏🙏😊

रीना कुमारी प्रजापत said

बहुत खुबसूरत रचना

वन्दना सूद replied

शुक्रिया 😊

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Sundar prastuti, sach vyakt Kiya hai pranam sweekar karein🙏🙏

वन्दना सूद replied

प्रणाम 🙏😊

Arpita pandey said

Mamta aur vatsalya se bhari Hui rachna

वन्दना सूद replied

शुक्रिया 🙏😊

Updesh Kumar Shakyawar said

क्या संगम का समावेश प्रस्तुत किया

वन्दना सूद replied

शुक्रिया sir 🙏🙏😊

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