जगमग जोत जले
हरि के द्वार तले
तरूण निशा चंचल ऊषा
हरि का निशदिन नमन करें
तुंग शिखा उत्कंठ हवा
हरिकृपा का यतन करें
करें अभिनंदन शंखध्वनि
हे करुणाकर! मुकुटमनि!
धूल धनी जो पायी आसन
हरि के पांव तले
जगमग जोत जले.…...
स्याही समंदर कानन लेखन
सूक्ष्म पड़े हरि महिमा को
नौ रस स्वरद्वय शब्द अलंकृत
उमड़ पड़े हरि महिमा को
करें अभिनंदन सर्व कला
शील समुंदर! श्याम घटा!
अखिल छटा होकर नतमस्तक
हरि के आगे चले
जगमग जोत जले...….
सर्वाधिकार अधीन है