अंतर्मन के गहनतम गह्वर में,
आशा रूपी किरण बिखेरती है,
निराश, निचेष्ट, निर्जीव सम,
जीवों में जीवंतता भर देती है,
नितांत ठूँठ हृदय में भाव भर,
प्रेम की सतत धारा बहाती है,
निजत्व की परिधि को लाँघ,
पर पीड़ा का अनुभव कराती है,
भाषा में व्यक्त संवेदनाओं से,
जीवन का मर्म समझाती है।
शब्दों की अभिधान है कविता,
जीवन की पहचान बतलाती है,
कविता यही तो सिखाती है,
आदमी को आदमी बनाती है।
🖊️सुभाष कुमार यादव