तुम हो जरूर रोशनी छन छन कर आती।
जुगनू सी अनपहचानी किरण कौंध जाती।।
भावनाओं को सहसा तरुणाई छू जाने पर।
मूक-गान की स्वर लिपि अंदर कौंध जाती।।
कठिन विषमताओं के जीवन में तुम जैसी।
पास नही सा सुख का स्पन्दन कौंध जाती।।
जीवन का रहस्य कर्म समर्पण सा लगता।
आस्था की विशेष घड़ी में सुई कौंध जाती।।
ऊँची उड़ान में 'उपदेश' स्रष्टा जैसी तुम हो।
तुम हो जरूर तुम्हारी उपस्थित कौंध जाती।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद