बच्चों के भविष्य को उजाड़ कर,
तू पाई पाई को जोड़कर।
आलीशान फ्लैट बनाकर,
अट्टहास लगा रहा।
गरीबों की हाय,
तुम्हें लग जाएगी।
इंसाफ नहीं मिला,
तो इमारत।
ताश के पत्तों की तरह,
ढ़ह जाएगी।
अंकी इंकी डंकी लाल,
का कहना।
मानव सेवा की,
कुछ ना लिया।
घर का भेदी ,
लंका ढा गया।
हेरा फेरी का हिसाब,
खाते सहित बाहर आ गया।
न्याय का प्रपंच रच कर,
षड्यंत्र को किसी पै थोपकर।
कुदरत की मार से,
ना बच पाएंगे।
स्वयं की गलती,
ना मानकर।
अपने ही सिर,
गलतियों का बोझ बढ़ाएंगे।