ऋषिकेश की त्रिवेणी में स्नान कर
अयोध्या की गर्मी को भूल
चल पड़े अगले सफ़र पर
हिमालय की ऊँचाइयों को नापने
पर्वतों में बादलों की लुका छुपी देखने
गोद में बहती कहीं भागीरथी की धारा देखने
सिंधु,गंगा -ब्रह्मपुत्र,मेघना और कहीं संगम दर्शन करने ..
क्या कहने इस खूबसूरती के
कहीं पेड़ों के लिबाज़ से सजती सँवरती पहाड़ियाँ
कहीं पिघलती बर्फ से नहाती दिखती पहाड़ियाँ
तो कहीं बर्फ से ढकी वादियाँ सुनहरी धूप में स्वर्ण सी सुशोभित होती
बदलते मौसम की करवटें हमें यूँ खिलातीं
कि रात से अलविदा लेते ही गर्मी से भगाती
तो दिन ढलते ही ठंड में कम्पन दिलाती..
सुन्दरता ऐसी कि
कुदरत के बनाए (आँखें)कैमरे में भी क़ैद न हो पाए
तो इंसान के कैमरे का क्या कहें
अद्वितीय आलौकिक अतुलनीय मिज़ाज इनका ऐसा
कि शब्द कम पड़ जाएँ , सोच अधूरी रह जाए
पर कथनी न कहीं जाए और न ही लिखी जाए
शायद प्रकृति के गुणों को बखान स्वयम् प्रकृति ही कर पाए..
वन्दना सूद
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