मन मेरा पंछी बन किस नगर को उड़ चला
जहां प्रेम शांति सौहार्द हो उस डाली की ओर मुड़ चला।
सिर्फ़ खुशी चाह रही उसको
सबका दुःख हर लेना है
कांटों से भरीं हैं राहें वफ़ा के
इसको उसपे चलना है।
बस खुशियां हीं खुशियां हों जग में
बस यही कामना है।
आंखों में अपनी आशाओं के बादल
इक्षाओं के लिए सभी की बरसात लिए
उस पर क्षितिज के ओर चला
मन मेरा पंछी बन इस नगर को उड़ चला...
हरी वादियों जहां धूप सुनहरी
सब कुछ सच्चा ना भेद गहरी
सीधा रास्ता जहां शांत हो डगरी
कोई जहां ना छल कपट हो
सबके लिए खुला विकास जा पट हो
सबकुछ साफ़ झलकता ना कोई
घूंघट हो
उस ओर मन मेरा मुड़ चला
मन मेरा पंछी बन उस नगर को उड़ चला
शान्ति समभाव समरसता हो जहां
उस नगर की सैर चला
उस नगर की ओर चला
उस डगर की ओर उड़ा
मन मेरे पंछी बन प्रेम नगर की ओर चला
मन मेरा पंछी बन शांति सौहार्द की ओर चला...