भीतर कहीं एक भीगा आँगन है,
जहाँ ख़्वाहिशें बिना दस्तक के
बरसती रहती हैं—
ना मौसम पूछती हैं,
ना मंज़िल।
वे आती हैं,
जैसे अधूरी प्रार्थनाएँ
आसमान के आँचल में छुपकर
धरती को भींचने चली आती हैं।
मैं खड़ी हूँ,
इस अनसुने जलप्रपात के नीचे,
जहाँ हर बूँद एक सपना है,
हर सपना—एक छलावा।
माँ ने कहा था—
“कभी सब मत माँगना,
बरसातें अक्सर बाँझ छोड़ जाती हैं।”
पर मैंने माँगा—
एक अपना आसमान,
एक प्रेम जो मौन में भी सुन सके,
एक देह जिसमें आत्मा काँपती हो,
एक समय… जो सिर्फ मेरा हो।
ख़्वाहिशें हँसी थीं मुझ पर,
और मैं भीगती रही—
हर बूँद में
एक नई तृष्णा उगती रही।
कुछ ख़्वाहिशें टूट गईं
उस घुटन भरे छत के नीचे,
जहाँ सपनों को
पानी की तरह बहा दिया जाता है।
कुछ अब भी हैं—
भीतर किसी कोने में जमा,
जैसे भींगे हुए कपड़े
सूखने से इनकार कर दें।
और फिर…
एक दिन जब भीतर की बारिश
बाँध तोड़ देगी,
मैं बहे जाऊँगी
उन इच्छाओं के साथ
जो कभी पुकार भी न सकीं खुद को।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




