New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.



The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

ख़्वाहिशों की बारिश

भीतर कहीं एक भीगा आँगन है,
जहाँ ख़्वाहिशें बिना दस्तक के
बरसती रहती हैं—
ना मौसम पूछती हैं,
ना मंज़िल।

वे आती हैं,
जैसे अधूरी प्रार्थनाएँ
आसमान के आँचल में छुपकर
धरती को भींचने चली आती हैं।

मैं खड़ी हूँ,
इस अनसुने जलप्रपात के नीचे,
जहाँ हर बूँद एक सपना है,
हर सपना—एक छलावा।

माँ ने कहा था—
“कभी सब मत माँगना,
बरसातें अक्सर बाँझ छोड़ जाती हैं।”
पर मैंने माँगा—
एक अपना आसमान,
एक प्रेम जो मौन में भी सुन सके,
एक देह जिसमें आत्मा काँपती हो,
एक समय… जो सिर्फ मेरा हो।

ख़्वाहिशें हँसी थीं मुझ पर,
और मैं भीगती रही—
हर बूँद में
एक नई तृष्णा उगती रही।

कुछ ख़्वाहिशें टूट गईं
उस घुटन भरे छत के नीचे,
जहाँ सपनों को
पानी की तरह बहा दिया जाता है।

कुछ अब भी हैं—
भीतर किसी कोने में जमा,
जैसे भींगे हुए कपड़े
सूखने से इनकार कर दें।

और फिर…
एक दिन जब भीतर की बारिश
बाँध तोड़ देगी,
मैं बहे जाऊँगी
उन इच्छाओं के साथ
जो कभी पुकार भी न सकीं खुद को।




समीक्षा छोड़ने के लिए कृपया पहले रजिस्टर या लॉगिन करें

रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

पवन कुमार "क्षितिज" said

बढ़िया..बहुत बढ़िया..👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

“इस कविता में आत्मा की भीतरी बारिश बोलती है—हर बूँद, हर ख़्वाहिश एक गवाही है उस स्त्री-मन की जो चुपचाप बहता है, टूटता है, और फिर भी पूर्ण होने की कामना करता है। आपकी कलम ने वे शब्द गढ़े हैं जो अक्सर आँखों से बह निकलते हैं। अद्भुत!” 🌧️🕊️✨

कविताएं - शायरी - ग़ज़ल श्रेणी में अन्य रचनाऐं




लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।


लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम


© 2017 - 2025 लिखन्तु डॉट कॉम
Designed, Developed, Maintained & Powered By HTTPS://LETSWRITE.IN
Verified by:
Verified by Scam Adviser
   
Support Our Investors ABOUT US Feedback & Business रचना भेजें रजिस्टर लॉगिन