दुश्मनी इस तरह निभाते हैं
दोस्त ही आइना दिखाते हैं।।
जिनके हाथों में सिर्फ खंजर हैं
वो हमें शायरी सिखाते हैं।।
रोज हवा दिए बुझाती है जब
तो हम रोज फिर जलाते हैं।।
कांच के घर में रहके अब तो
लोग पत्थर बहुत चलाते हैं ।।
उनकी नजरें कभी नहीं झुकती
अपना फर्ज जो निभाते हैं ।।
छोटे बच्चों की मुस्कुराहट से
जख्म हम खुदके भूल जाते हैं।।
हौंसला है तो हम भी जी लेंगे
बेवजह क्यूँ कसम दिलाते हैं I I
जब हवा में नमी का आलम हो
हर तरफ फूल मुस्कराते हैं II
दास हिम्मत जिन्हे संभलने की
रास्ता खुद नया बनाते हैं I I