ना किया दहन मन के पाप का
ना लड़ा पुरजोर अधिकारों के लिए
जो सिर्फ़ सोया रहा सपनों में खोया रहा
जो न समाज देश दुनियां के लिए लड़ा
जो न फर्ज़ ईमान और संविधान के लिए
जीया।
जो कभी किसी के लिए कुछ ना किया।
जो गरीब गुर्बा पिछड़ों दलितों आदिवासियों
आम जनों के लिए कुछ ना किया।
जो सिर्फ़ अय्याशी शराब शबाब के
लिए मरा।
ऐसे लोग क्या रावण दहन करेंगें
हर साल यूहीं जियेंगें
हर साल यूहीं मरेंगे...
हर साल यूहीं जियेंगें...