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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

मूमल महेंद्र - एक अमर प्रेम कहानी

Dec 15, 2025 | वास्तविक रचनायें | लिखन्तु - ऑफिसियल  |  👁 6,956

मूमल महेंद्र - एक अमर प्रेम कहानी






राजस्थान का जैसलमेर शहर जिसे स्वर्ण नगरी "Golden City" के नाम से भी जाना जाता है अपनी ऐतिहासिकता रेतीले टीलों और ऊंट सफारी के साथ-साथ मूमल महेंद्र की सच्ची अमर प्रेम कहानी के लिए भी प्रसिद्ध है।
मूमल महेंद्र एक ऐसी दुखद प्रेम कहानी है जिसे पढ़ आपकी आंखों में आंसू आ जाएंगे, दिल में दर्द उठने लगेगा और रूह कांपने लग जाएगी।
आइए जानते है कौन थे मूमल महेंद्र? क्या थी इनकी कहानी?


कहानी शुरू होती है पश्चिमी राजस्थान के अमरकोट से जो कि वर्तमान में पाकिस्तान में है अमरकोट का शासक महेंद्र जो कि बहुत ही तेजस्वी और पराक्रमी था।
एक दिन महेंद्र अपनी बहनोई हमीर जडेजा जो कि गुजरात का शासक था के साथ शिकार पर गया। आज महेंद्र ने ठाना था कि आज खरगोश का शिकार किया करेंगे, इसलिए इन्होंने खरगोश को ढूंढना शुरू किया और खरगोश को ढूंढते ढूंढते बहुत आगे निकल गए और राजस्थान के जैसलमेर में पहुंच गए। वहां जाकर इन्हें एक खरगोश दिखाई दिया उसका पीछा करते हुए यह जैसलमेर के लौद्रवा में पहुंच गए लेकिन यहां खरगोश काक नदी में कूद जाता है जिससे महेंद्र खरगोश का शिकार नहीं कर पाता है।
रात हो जाती है और दोनों थक भी जाते हैं इसलिए दोनों यही नदी किनारे एक पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं और यही ठहरने और खाने की व्यवस्था का सोचते हैं तभी उनकी नजर नदी पार एक खूबसूरत बगीचे और महल पर पड़ती है जो कि लौद्रवा की राजकुमारी मूमल का था। मूमल एक अविवाहित खूबसूरत कन्या थी। मूमल की खूबसूरती के चर्चे दूर-दूर तक थे। मूमल से विवाह के लिए कई धनवान और तेजस्वी राजा आए पर मूमल को कोई पसंद नहीं आया। मूमल ने प्रतिज्ञा ले रखी थी कि वो उसी से विवाह करेगी जो उसका दिल जीत लेगा वरना आजीवन कुंवारी ही रहेगी।


महेंद्र और हमीर दोनों मूमल के महल के बाहर पहुंचे और द्वारपाल को सारी घटना बताते हुए अपना परिचय दिया। द्वारपाल ने महल में सूचना की और इनके खाने की और ठहरने की व्यवस्था की।
भोजन करने और कुछ देर विश्राम करने के बाद इन्होंने वापस अमरकोट लौटने का सोचा, तभी एक सेवक आता है और कहता है की राजकुमारी आपसे मिलना चाहती है लेकिन एक साथ नहीं अलग-अलग।


महेंद्र हमीर से कहता है कि आप बड़े हैं पहले आप जाइए।
हमीर राजकुमारी से मिलने के लिए उसके कक्ष की ओर बढ़ता है लेकिन वहां कई भयानक जानवरों को देखकर वह वापस लौट आता है और महेंद्र से कहता है कि यह कैसी विचित्र महिला है जिसने अपनी सुरक्षा के लिए इतने भयानक जानवरों को रख रखा है। हमें नहीं मिलना है, हमें अब यहां से अमरकोट के लिए निकलना चाहिए। लेकिन महेंद्र कहता है; मैं जाऊंगा और राजकुमारी से मिलूंगा।

महेंद्र मूमल के कक्ष की ओर बढ़ा तो रास्ता रोके शेर बैठा नज़रआया उसने तुरंत अपना भाला लिया और शेर पर पूरे वेग से प्रहार कर दिया। शेर जमीन पर लुढ़क गया और उसकी चमड़ी में भरा भूसा बाहर निकल आया। महेंद्र आगे बढ़ा तभी उसे आगे अजगर बैठा दिखाई दिया महेन्द्र ने भूसे से भरे उस अजगर को भी अपनी तलवार के प्रहार से टुकड़े-टुकड़े कर दिया। अगले चौक मे महेन्द्र को पानी भरा नजर आया, महेन्द्र ने पानी की गहराई नापने हेतु जैसे पानी में भाला डाला तो ठक की आवाज आई महेन्द्र समझ गया कि जिसे वह पानी समझ रहा है वह कांच का फर्श है।
कांच का फर्श पार कर सीढियाँ चढ़कर महेन्द्र मूमल की मेड़ी मे प्रविष्ट हुआ आगे मूमल खड़ी थी, जिसे देखते ही महेन्द्र रुक गया। महेंद्र की नज़रें मूमल को देख ठहर सी गई थी। एड़ी तक लंबे बाल, बड़ी-बड़ी सुन्दर आंखे, चेहरा शरद पूर्णिमा के चांद जैसा, उसकी नजरें मूमल के चेहरे को एकटक देखते जा रही थी दूसरी और मूमल भी महेंद्र को बस देखे ही जा रही थी। दोनों की नज़रे हटने का नाम ही नहीं ले रही थी।

आखिर मूमल ने नज़रें नीचे कर महेन्द्र का स्वागत किया। दोनों ने खूब बातें की, बातों ही बातों में पहली मुलाकात में दोनों में प्रेम हो गया और कब रात ख़त्म हो गई और कब सुबह का सूरज निकल आया उन्हें पता ही ना चला।
उधर हमीर को महेन्द्र के साथ कोई अनहोनी ना हो जाए सोच कर नींद ही नहीं आई। सुबह होते ही उसने नाई के साथ संदेश भेज महेन्द्र को बुलवाया और चलने को कहा।


मूमल ने जाने से पहले महेंद्र के आगे विवाह प्रस्ताव रखा लेकिन महेंद्र ने अस्वीकार कर दिया क्योंकि उसकी पहले से सात रानियां थी।
लेकिन दोनों एक दूसरे से दूर नहीं होना चाहते थे,पर महेंद्र को अमरकोट वापस जाना ही था। मूमल ने एक शर्त पर महेंद्र को जाने के लिए इजाज़त दी कि जाओ लेकिन मुझसे रोजाना मिलने आना होगा।


महेंद्र ने मूमल की शर्त स्वीकार कर ली और अमरकोट के लिए निकल गया। महेंद्र वहां से आ तो गया लेकिन उसका ध्यान मूमल की ओर ही लगा हुआ था और वह चिंतित था कि किस तरह मीलों का रास्ता तय कर वह रोजाना शाम होने तक लौद्रवा पहुंचेगा और कैसे सूरज निकलने से पहले अमरकोट वापस आएगा।

आखिर उसे सुझा कि अपने ऊँटो के टोले में ऐ सा ऊंट खोजा जाए जो रातों रात लोद्रवा जाकर सुबह होते ही वापस अमरकोट आ सके।
उसने अपने ऊंट चराने वाले रायका रामू को बुलाकर पूछा तो रामू रायका ने बताया कि उसके टोले में एक चीतल नाम का ऊंट है जो बहुत तेज दौड़ता है और वह उसे आसानी से रात को लोद्रवा ले जाकर वापस सुबह होने से पहले ला सकता है। फिर रामू रायका रोज शाम को चीतल ऊंट को सजाकर महेन्द्र के पास ले आता और महेन्द्र चीतल पर सवार हो एड लगा लोद्रवा मूमल के पास जा पहुँचता और सुबह होने से पहले अमरकोट आ पहुँचता।


महेन्द्र विवाहित था उसके सात पत्नियाँ थी। मूमल के पास से वापस आने पर वह सबसे छोटी पत्नी के पास आकर सो जाता, इस तरह कोई सात आठ महीनों तक उसकी यही दिनचर्या चलती रही। इन महीनों में वह बाकी पत्नियों से तो मिला तक नहीं इसलिए वे सभी सबसे छोटी बहु से ईर्ष्या करनी लगी और एक दिन जाकर इस बात पर उन्होंने अपनी सास से जाकर शिकायत की।
सास ने छोटी बहु को समझाया कि बाकी पत्नियों को भी महेंद्र ब्याह कर लाया है उनका भी उस पर हक़ बनता है इसलिए महेंद्र को उनके पास जाने से मत रोका कर। तब महेंद्र की छोटी पत्नी ने अपनी सास को बताया कि महेंद्र तो उसके पास रोज सुबह होने से पहले आता है और आते ही सो जाता है उसे भी उससे बात किये कोई सात आठ महीने हो गए।

छोटी बहु की बाते सुन महेंद्र की माँ को शक हुआ और उसने यह बात अपनी पति राणा वीसलदे को बताई। चतुर वीसलदे ने छोटी बहु से पूछा कि जब महेंद्र आता है तो उसमे क्या कुछ ख़ास नजर आता है। छोटी बहु ने बताया कि जब रात के आखिरी पहर महेंद्र आता है तो उसके बाल गीले होते है जिनमें से पानी टपक रहा होता है।

चतुर वीसलदे ने बहु को हिदायत दी कि आज उसके बालों के नीचे कटोरा रख उसके भीगे बालों से टपके पानी इकट्ठा कर मेरे पास लाना। बहु ने यही किया और कटोरे में एकत्र पानी वीसलदे के सामने हाजिर किया। वीसलदे ने पानी चख कर कहा- " यह तो काक नदी का पानी है इसका मतलब महेंद्र जरुर मूमल की मेंड़ी में उसके पास जाता होगा।

महेंद्र की सातों पत्नियों ने आपस में सलाह कर ये पता लगाया कि महेन्द्र वहां जाता कैसे है। जब उन्हें पता चला कि महेन्द्र चीतल नाम के ऊंट पर सवार हो मूमल के पास जाता है तो दुसरे दिन उन्होंने चीतल ऊंट के पैर तुड़वा दिए ताकि उसके बिना महेंद्र मूमल के पास ना जाने पाए।
रात होते ही जब रामू राइका चीतल लेकर नहीं आया तो महेंद्र उसके घर गया वहां उसे पता चला कि चीतल के तो उसकी पत्नियों ने पैर तुड़वा दिए है तब उसने रामू से चीतल जैसा दूसरा ऊंट माँगा।


रामू ने कहा -" उसके टोले में एक तेज दौड़ने वाली एक टोरडी (छोटी ऊंटनी) है तो सही पर कम उम्र होने के चलते वह चीतल जैसी सुलझी हुई व अनुभवी नहीं है आप उसे ले जाये पर ध्यान रहे उसके आगे चाबुक ऊँचा ना करे,चाबुक ऊँचा करते ही वह चमक जाती है और जिधर उसका मुंह होता उधर ही दौड़ना शुरू कर देती है तब उसे रोकना बहुत मुश्किल है।
महेंद्र टोरडी पर सवार हो लोद्रवा के लिए रवाना होने लगा पर मूमल से मिलने की बैचेनी के चलते वह भूल गया कि चाबुक ऊँचा नहीं करना है और चाबुक ऊँचा करते ही टोरडी ने एड लगायी और सरपट भागने लगी अँधेरी रात में महेंद्र को रास्ता भी नहीं पता चला कि वह कहाँ पहुँच गया थोड़ी देर में महेंद्र को एक झोंपड़े में दिया जलता नजर आया वहां जाकर उसने उस क्षेत्र के बारे में पूछा तो पता चला कि वह लोद्रवा की जगह बाड़मेर पहुँच चुका है। रास्ता पूछ जब महेंद्र लोद्रवा पहुंचा तब तक रात का तीसरा पहर बीत चुका था।
मूमल उसका इंतज़ार कर सो चुकी थी उसकी मेंड़ी में दिया जल रहा था। उस दिन मूमल की बहन सुमल भी मेंड़ी में आई थी दोनों की बाते करते करते आँख लग गयी थी। सहेलियों के साथ दोनों बहनों ने देर रात तक खेल खेले थे सुमल ने खेल में पुरुषों के कपड़े पहन पुरुष का अभिनय किया था और वह बातें करती करती पुरुष के कपड़ों में ही मूमल के पलंग पर उसके साथ सो गयी।


महेंद्र मूमल की मेंड़ी पहुंचा सीढियाँ चढ़ जैसे ही मूमल के कक्ष में घुसा और देखा कि मूमल तो किसी पुरुष के साथ सो रही है, यह दृश्य देखते ही उसके हाथ में पकड़ा चाबुक वही गिर पड़ा और वह चुपचाप बिना किसी को कुछ कहे वापस अमरकोट लौट आया, वह मन ही मन सोचता रहा कि जिस मूमल के लिए मैं प्राण तक न्योछावर करने के लिए तैयार था वह मूमल ऐसी निकली, जिसके लिए मैं कोसों दूर से आया हूँ वह पर पुरुष के साथ सोयी मिलेगी,धिक्कार है ऐसी औरत पर।

उधर सुबह आँख खुलते ही मूमल की नज़र जैसे ही महेंद्र के हाथ से छूटे चाबुक पर पड़ी वह समझ गयी कि आया था पर शायद किसी बात से नाराज होकर चला गया,उसके दिमाग में कई कल्पनाएँ आती रही।
कई दिनों तक मूमल महेंद्र का इंतजार करती रही कि वो आएगा और जब आएगा तो सारी गलतफहमियां दूर हो जाएँगी पर महेंद्र नहीं आया मूमल उसके वियोग में फीकी पड़ गई, उसने श्रंगार करना छोड़ दिया,खाना पीना भी छोड़ दिया, उसकी कंचन जैसी काया काली पड़ने लगी।
उसने महेंद्र को कई चिट्ठियां लिखी पर महेंद्र की पत्नियों ने वह चिट्ठियां महेंद्र तक पहुँचने ही नहीं दी। आखिर मूमल ने एक ढोली (गायक) को बुला महेंद्र के पास भेजा पर उसे भी महेंद्र से नहीं मिलने दिया गया पर वह किसी तरह महेन्द्र के महल के पास पहुँचने में कामयाब हो गया और रात पड़ते ही उस ढोली ने मांढ राग में गाना शुरू किया -

" तुम्हारे बिना,सोढा राण, यह धरती धुंधली
तेरी मूमल राणी है उदास
मूमल के बुलावे पर
असल प्रियतम महेन्द्र अब तो घर आव।"


ढोली के द्वारा गयी मांढ सुनकर भी महेंद्र का दिल नहीं पसीजा और उसने ढोली को कहला भेजा कि -" मूमल से कह देना न तो मैं रूप का लोभी हूँ और न ही वासना का कीड़ा। मैंने अपनी आँखों से उस रात उसका चरित्र देख लिया है जिसके साथ उसकी घनिष्ठता है उसी के साथ रहे, मेरा अब उससे कोई सम्बन्ध नहीं ।"
ढोली द्वारा सारी बात सुनकर मूमल के पैरों तले की जमीन ही खिसक गई अब उसे समझ आया कि महेन्द्र क्यों नहीं आया।मूमल ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे ऐसा कलंक लगेगा।
उसने तुरंत अमरकोट जाने के लिए रथ तैयार करवाया ताकि अमरकोट जाकर महेंद्र से मिल उसका वहम दूर किया जा सके कि वह कलंकिनी नहीं है और उसके सिवाय उसका कोई नहीं।


अमरकोट में मूमल के आने व मिलने का आग्रह पाकर महेंद् ने सोचा,शायद मूमल पवित्र है , लगता है मुझे ही कोई ग़लतफ़हमी हो गई और उसने मूमल को सन्देश भिजवाया कि वह उससे सुबह मिलने आएगा। मूमल को इस सन्देश से आशा बंधी।
रात को महेन्द्र ने सोचा कि -देखें,मूमल मुझसे कितना प्यार करती है ?"'
सो सुबह उसने अपने नौकर को सिखाकर मूमल के डेरे पर भेजा। नौकर रोता-पीटता मूमल के डेरे पर पहुंचा और कहने लगा कि -"महेंद्र जी को रात में काले नाग ने डस लिया जिससे उनकी मृत्यु हो गयी।
नौकर के मुंह से इतना सुनते ही मूमल पछाड़ खाकर धरती पर गिर पड़ी और पड़ते ही महेंद्र के वियोग में उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
महेन्द्र को जब मूमल की मृत्यु का समाचार मिला तो वह सुनकर उसी वक्त पागल हो गया और सारी उम्र " हाय म्हारी प्यारी मूमल,म्हारी प्यारी मूमल" कहता फिरता रहा और मूमल के वियोग में महेंद्र ने भी प्राण त्याग दिए।


Post By Admin Reena Kumari Prajapat




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

वन्दना सूद said

Great article 👌👌

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