हर कविता कवि की कल्पना नहीं होती,
हर कविता कवि की हक़ीक़त भी नहीं होती।
उगलती कई राज़ कलम, कागज़ पर,
उस राज़ की हर इबारत राज़ नहीं होती।
दफ़न है जो सीने में दर्द उस कवि के,
उस दर्द की ख़लिश लिखने से भी
ख़त्म नहीं होती।
हर कवि अपने दर्द को कलम से बयां करता है,
ज़बाॅं से बयां करने की उसकी फितरत नहीं होती।
एक कवि कभी नहीं चाहता
कि ये जहां उसे भूल जाए,
इसीलिए वो दर्दों को ज़बाॅं से बयां करता नहीं।
क्योंकि ज़बाॅं से बयां करेगा तो वो कुछ पलों
के लिए ही रहेगा और ज़माना भूल जायेगा,
जो बयां करेगा वो दर्दों को कलम से
तो इतिहास बन जायेगा।
"रीना कुमारी प्रजापत"