हद पार गये किनारे सैलाब बन गये।
किनारे की बस्तियाँ दलदल बन गये।।
आँगन मे पेड़ घौंसले डाली पर सजे।
इंसानो के घर लगते महताब बन गये।।
ऐसी त्रासदी पहले कभी देखी नही।
भोजन को तरसते जन आम बन गये।।
राहत सामग्री बाँटने वाले कहीं कहीं।
बेताब 'उपदेश' जरूरी काम बन गये।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद