स्वार्थी इस दुनिया में, अपने ही भाग खड़े हुए।
जो साथ थे तेरे, एक-एक करके विदा हुए।
तेरी अकाल मृत्यु पर, एक भी स्वर न फूटा।
भीड़ थी बहुत, मगर एक भी न जूझा।
माना कि जिंदगी का सफर, इतना आसान तो न था।
पर तू भी क्या, पल दो पल का मेहमान तो न था।
भ्रष्टाचारियों ने मिलकर, तेरा गला घोंट दिया।
तानाशाही के चलते, बकरा बलि का तुझे बना दिया।