“गुरु चरण – मेरा सच्चा सहारा” एक भक्ति-रस और छंद से सजी ऐसी काव्य-रचना है, जो गुरु की महिमा, शिष्य की श्रद्धा, और आत्मा के पूर्ण समर्पण का भाव गहराई से व्यक्त करती है।
इस कविता में ‘अभिषेक’ अपनी लेखनी से यह दर्शाते हैं कि जब जीवन की दिशाएँ धुंधली हो जाती हैं, तब गुरु का आशीर्वाद ही दीपक बनकर राह दिखाता है।
गुरु केवल शिक्षा नहीं देते, वे आत्मा को दिशा, विवेक, और प्रकाश देते हैं।
उनकी चरण-रज ही शिष्य के लिए सच्चा सहारा बनती है।
"गुरु चरण: मेरा सच्चा सहारा"
(गुरु पुर्णिमा विशेष)
गुरु बिन जीवन मूक समान,
ना ज्ञान, ना गति, ना पहचान।
जग के हर शास्त्र, हर व्यवहार,
गुरु दें चेतना का उपहार।
अंधकार में दीप बनाकर,
करते अंतर को प्रकाशित।
सत्पथ पर जब डगमग जाऊं,
गुरु बने नौका—सुदृढ़, आश्वस्त।
गुरु ना हो तो कौन बताए,
राहें जब हों भ्रम के साए।
तू ही ब्रह्म, तू ही शिवशंकर,
तू ही शरण हर दुविधा में।
तेरे बिना ना दीप जले,
ना आत्मा की सुधि जागे।
तेरे बिना ना भाव पले,
ना 'मैं' से 'हम' के स्वर जागे।
‘अभिषेक’ कहे मन थाम के,
गुरु के प्रेम में भींज के।
ना माँगूं पद, ना ताज कोई,
बस रहूं चरणों से जुड़ के।
शब्द वही जब तुम सिखाओ,
ध्वनि वही जब तुम उच्चारो।
तू जो दया-दृष्टि कर दे,
पत्थर में भी प्राण उभारो।
‘अभिषेक’ करे आज नमन,
सुमन समर्पित चरण-कमलन।
ना माँगूं वैभव, ना कीर्ति-गान,
बस गुरु का अमृत-आशीष प्रदान।
जिनसे शब्द बने संजीवनी,
जिनसे कर्म बने आराधना।
गुरु-वंदन से मिले समर्पण,
बिन कहे हो हर साधना पूर्ण।
गुरु पूर्णिमा के पुण्य दिवस पर,
‘अभिषेक’ माँगे केवल एक वर—
बना रहूं मैं विनयी शिष्य,
शून्य अहं में, शांत निश्छल।
आपके ज्ञान-दीप से जगूं,
करुणा के अमृत में भीगूं।
गुरु चरणों में जीवन टेके,
जन्म-जन्म तक ऋणी रहूं।
"गुरु चरण ही मेरे जीवन का सत्य शाश्वत नारा हो।"
"बस गुरु चरणन में मन अडिग रहे — यही सच्चा सहारा हो।"
लेखक: अभिषेक मिश्रा "बलिया"