कितना सहज, सरल था वो भोलापन,
इसी बात ने लूट लिया था मेरा मन।
न कोई साज-श्रृंगार, न कोई आभूषण,
देखता ही रह गया, आपका सादापन।
प्रथमतया देख उनके नैन-नक्श तड़पा,
जैसे कस्तूरी के लिए तड़पता है हिरन।
मिलकर जब गए हम अपने-अपने पथ,
बिछड़ना नहीं चाहते थे नयन से नयन।
पुनर्मिलन की आस थी दोनों के मन में,
मौन संवाद ने बढ़ा दी दोनों की उलझन।
🖊️सुभाष कुमार यादव