नक़ाब से मज़हब नहीं है ! शर्म गाहों की हिफाज़त आंखों की हिजाब से हो सकता है
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कयामात जो कल आने वाली है वह आ चुकी है तेरी गंदी नक़ाब के पहनने से
शरीर का हर अंग नंगा दिखता है आँखें खुली है फकत मर्दों को टेपने केलिए ये नक़ाब है
नक़ाब वाली औरतें अपने पति जैसा भरुआ सभी मर्दों को समझते ये समझना भूल है
जो तुम करने वाली है मेरा चरित्र_आचरण नेक है इस अमल से कायनात में देखता है वसी
बेहया और बेशर्म औरतें ये मत कहो कि नक़ाब मेरा ईमान है जबकि तुम हिज़ाब नहीं है
नक़ाब काली या रंग बिरंगी पहनकर जिस्म का अंग दिखाना न ये नक़ाब है न ही हिजाब है
वसी अहमद क़ादरी ! वसी अहमद अंसारी !
मुफक्किर ए कायनात ! मुफक्किर ए मखलुकात
दरवेश ! लेखक ! पोशीदा शायर! 20.12.2025


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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