कापीराइट गीत
सारा शहर डूबा हुआ है बेवक्त बारिशों में
परेशां हैं यहां लोग हर वक्त बारिशों में
शहर की सङकों को है बारिश से दुश्मनी
सङकों की हालत से परेशां है हर आदमी
बनता है ये नया कारवां छोटी सी बारिशों में
परेशां हैं यहां लोग .................
सङकें बनी समन्दर जो बारिश हो जोर की
कश्ती में हमने तब यूं बारिश में सैर की
बङे निराश हैं सभी इन बेवक्त बारिशों में
परेशां हैं यहां लोग ................
हर बार चीख इसकी गूंजी है विश्व भर में
लेकिन ये उपाय सारे लटके हुए अधर में
बेनकाब हो रहे हैं यह हर बार बारिशों में
परेशां हैं यहां लोग................
ये धूसखोर और कामचोर बैठे हैं हर जगह
काम कभी करते नहीं हैं ये रोते हैं हर जगह
ये अफसर नहा रहे हैं यूं नोटों की बारिशों में
परेशां हैं यहां लोग .................
अब ऐसे शहर में कोई कैसे बसर करेगा
ये विकास भी यहां पर सौ बार दम भरेगा
नावों में कर रहे हैं ये सब बात बारिशों में
परेशां हैं यहां लोग ...............
अय मेरे खुदा तू ही चला दे ऐसी कोई लहर
खुल जाएं ये रास्ते आसां हो जाए यह सफर
मेरा शहर बना है झील हल्की सी बारिशों में
परेशां हैं यहां लोग ..................
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
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