ख़ामोशी को मेरी अल्फ़ाज़ दीजिएगा,
मेरे दबे गीतों को आवाज़ दीजिएगा।
उड़ना छोड़ दिया है इन पॅंखों ने,
आप इन्हें फिर से परवाज़ दीजिएगा।
मेरी ग़ज़लों को सुर मिला साज़ दीजिएगा,
आप इन्हें बेमिसाल अंदाज़ दीजिएगा।
ख़ामोश रहती है कभी, कभी चीख पड़ती हैं,
आप इन्हें कालजयी फ़राज़ दीजिएगा।
---- रीना कुमारी प्रजापत ✍️ ✍️