मैं एक अलबेली कातिब
दास्तां तेरी लिखती हूॅं ,
तू अनजान है भलेही मुझसे
पर मैं तुझे बख़ूबी जानती हूॅं।
मैं एक अलबेली कातिब ..........✍
मैं एक अलबेली कातिब
मस्तानी बनी फिरती हूॅं ,
एक अनोखी दास्तां की
खोज खबर में रहती हूॅं।
मैं एक अलबेली कातिब...........✍
मैं एक अलबेली कातिब
दास्तां सभी की लिखती हूॅं ,
कोई मेरी भी दास्तां लिखे
बस इसी उम्मीद में रहती हूॅं।
मैं एक अलबेली कातिब...........✍
मैं एक अलबेली कातिब
मशहूर कातिबों को पढ़ती हूॅं ,
पढ़े कोई मुझ कातिब को भी
यही चाहत रखती हूॅं।
मैं एक अलबेली कातिब...........✍
~ रीना कुमारी प्रजापत