👉बह्र - बहर-ए-रमल मुसम्मन महज़ूफ़
👉 वज़्न - 2122 2122 2122 212
👉 अरकान - फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाइलुन
बिन तेरे मेरी कहानी कुछ नहीं कुछ भी नहीं
तू न हो तो जिंदगानी कुछ नहीं कुछ भी नहीं
मोतियों से कम नहीं ये क़द्र हो इसकी अगर
वरना ये आँखों का पानी कुछ नहीं कुछ भी नहीं
जिंदगी में फ़ख्र तुम पर हो अगर माँ-बाप को
बात इससे शादमानी कुछ नहीं कुछ भी नहीं
माल-ओ-ज़र पर गैर के रखता जो इंसाँ हो नज़र
बात उसमें ख़ानदानी कुछ नहीं कुछ भी नहीं
नाज़ जितना भी करो तुम , वक़्त के आगे मगर
सच है ये हुस्न-ओ-ज़वानी कुछ नहीं कुछ भी नहीं
जोश में तुमने किया जो पर न पूरा कर सके
'शाद' उस वादे के मा'नी कुछ नहीं कुछ भी नहीं
©विवेक'शाद'