बुजुर्ग-हमारी ज़िम्मेदारी, हमारा सम्मान
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एक समय था जब हमारे परिवारों में बुजुर्गों को सर्वाधिक सम्मान प्राप्त था। उनके बिना कोई भी निर्णय-छोटा हो या बड़ा-सोचा भी नहीं जा सकता था। उनकी राय परिवार का आदर्श और मार्गदर्शक होती थी। नज़दीकी ही नहीं, दूर के रिश्ते भी संबंधों की गर्माहट से सराबोर रहते थे।
परंतु आज के युग में स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। बुजुर्ग अकेले हो गए हैं-शारीरिक रूप से, भावनात्मक रूप से और सामाजिक रूप से भी। अपनों की उपेक्षा ने उन्हें भीतर तक तोड़ दिया है। न तो उनके पास आय का कोई निश्चित स्रोत है, न ही कोई ऐसा हाथ जो मुश्किल समय में सहारा दे सके। स्वास्थ्य समस्याओं ने उनके जीवन को और भी कठिन बना दिया है।
विडंबना यह है कि आज के समय में बुजुर्ग केवल उपेक्षित ही नहीं, असुरक्षित भी हैं। आए दिन ऐसी दुखद घटनाएं सामने आती हैं, जो यह सिद्ध करती हैं कि अकेले रह रहे बुजुर्गों के लिए वर्तमान समाज सुरक्षित नहीं रह गया है। एकल परिवार की व्यवस्था ने उन्हें सामाजिक ताने-बाने से काटकर रख दिया है।
कभी-कभी आर्थिक रूप से सक्षम होने के बावजूद भी वे भीतर से टूटे हुए रहते हैं, क्योंकि भावनात्मक ज़रूरतों की पूर्ति केवल पैसों से नहीं होती। यह सत्य है कि आर्थिक मजबूती बुजुर्गावस्था की समस्याओं को कुछ हद तक कम कर सकती है, लेकिन भावनात्मक पोषण की आवश्यकता जीवनभर बनी रहती है।
दुख की बात यह है कि बहुत कम लोग अपने बुढ़ापे की तैयारी करते हैं। अपनों के भरोसे पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर देना एक आदर्श सोच हो सकती है, लेकिन आज की व्यावहारिक दुनिया में यह सोच उन्हें असहाय बना देती है। वृद्धाश्रमों की बढ़ती संख्या इस बात की गवाही देती है कि सामाजिक ढांचा टूट रहा है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज जो स्थिति दूसरों की है, कल वही हमारी भी हो सकती है। वृद्धाश्रम कोई समाधान नहीं, बल्कि समाज के लिए एक आईना है जिसमें हमें अपनी असफलताएं दिखती हैं। अपने माता-पिता और बुजुर्गों को परायों के भरोसे छोड़ देना हमारी असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है।
यदि आपके घर में बुजुर्ग हैं, तो आप स्वयं को सौभाग्यशाली समझिए। बुजुर्गों की सेवा से बड़ी कोई इबादत नहीं। उनके जीवन के अंतिम पड़ाव को संतोष और सम्मान से भर दीजिए। जब वे इस संसार को अलविदा कहें, तो उनके चेहरे पर आत्मसंतोष की मुस्कान हो।
हर हाल में यह सुनिश्चित कीजिए कि उन्हें कभी भी उपेक्षा या अकेलेपन का अनुभव न हो। उन्हें समय दीजिए, बात कीजिए, और उन्हें महसूस कराइए कि वे आपके जीवन का अहम हिस्सा हैं। यही हमारा कर्तव्य है, यही हमारी संस्कृति की आत्मा है।
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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