अनदेखा अनजाना एहसास
कुछ पल ज़िन्दगी में ऐसे आए
जहाँ से सब ख़त्म हुआ दिखता था
नयी शुरुआत का वक़्त नहीं था
अनचाहे अन्त का दर्द सहना आसान नहीं था
वक़्त पीछे जा नहीं सकता था
उसे रोक पाएँ ऐसी हम में ताक़त ही कहाँ थी
दिल पर हाथ रखकर इतना ही कह सकते थे
कुछ तो करना है,हारना नहीं है
कौन,कहाँ,कैसे पलक झपकते कोई साथ आ खड़ा हुआ
थामा उसने इस क़दर कि हमें निखारता चला गया
हर राह ख़ुद-ब-ख़ुद बनने लगी
खोया हुआ वक़्त फिर से नज़र आने लगा
मिल गए वह पल जब हम वक़्त के साथ चलने लगे
डूबते हुए को किनारा मिल गया
लक्ष्य दे कर कोई जीतना भी सिखा गया
अनदेखा अनजाना सा कोई जो अपने होने का एहसास करवा गया ॥
-वन्दना सूद