बाहरी चकाचौंध
डॉ. एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
बाहरी चकाचौंध ने घेरा ऐसा, भीतर का निर्मल नीर सूखा। रिश्तों की गलियाँ संकरी हुईं, अपनापन का हर कोना रूखा।
दिखावे की दुनिया में भागा, सच्चाई का दर्पण धुंधलाया। पहचान की भीड़ में खोकर, निज स्वरूप भी बिसराया।
लालसा की बेलें लिपटीं ऐसे, स्नेह का अंकुर दब गया सारा। अपेक्षाओं के बोझ तले अब, सहज प्रेम का झरना भी हारा।
जब मौन की गहराई छुएगा, अंतर का सागर लहराएगा। बाहर का भ्रम जब टूटेगा, सच्चा आनंद भीतर पाएगा।