बेवजह आजकल बादल बरसते हैं बहुत
ताजगी के वास्ते ये रिश्ते तरसते हैं बहुत
हो चुकी है पीर पर्वत दिल के मरीज की
अब दवा के वास्ते हर शू भटकते हैं बहुत
क्या हुआ अश्कों का रोक कर सैलाब ये
अब तो चेहरे पर यहाँ गम उभरते हैं बहुत
सब कुछ तुम्हारे नामपे कुर्बान कर दिया
रात है कटती नहीं दिन भी डरते हैं बहुत
देखें कहाँ तक जुर्म की ये इन्तहा है दास
जुबाँ तो काट दी ये इरादे बोलते हैं बहुतII

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




