ये न पूछना क्या-क्या बचाया मैंने,
जितना कमाया उतना उड़ाया मैंने।
ज़ख्म, दर्द, ताने, धिक्कार, गाली,
इनके अलावा कहाँ कुछ पाया मैंने।
धन-दौलत से ज्यादा दोस्त कीमती,
उन पर दिल-ओ-जान लुटाया मैंने।
चाहे सीने से लगाये या घोंपे छुरा,
उनके उपहार दिल से लगाया मैंने।
टूटे दिल, गहरे ज़ख्म वालों को भी,
बहलाने के लिए ग़ज़ल सुनाया मैंने।
🖊️सुभाष कुमार यादव