अजीब शख़्स है, क्या-क्या तलाशता है,
साहिल पर आ कर समंदर तलाशता है।
उसको तलाशता नहीं जिसकी तलाश है,
जिसे तलाशना न था, उसे तलाशता है।
ये तलाश की तलाश भी कैसी तलाश है,
जिसे तलाशना था वो कहाँ तलाशता है।
मुसलसल तलाश करता तो पा ही लेता,
वो दिल-ओ-जाँ से उसे कहाँ तलाशता है।
मैं भी अब तलाश में हूँ उस अजनबी के,
दुनिया की भीड़ में जो मुझे तलाशता है।
🖊️सुभाष कुमार यादव