आंसू गिरते हुए,
आँखों को देख रहे थे,
क्या किसी के अपने नहीं थे हम,
अब चाहे हम जहाँ गिरे,
आँखें गिरती नहीं,
तो गिरते नहीं हम।
अब चाहे जिस जहां से गिरे हम,
आँखें वो देह था हमारा,
घर नहीं वो विरह था हमारा,
फिर भी आँखों में दिख रहे थे,
वो भी आँखों के ना हुए,
आँखों में मिले हुए इतने आँसू थे हम,
फिर भी आँखों जितने ना हुए हम।।
- ललित दाधीच।