शायरों ने फ़ुरकत के नाम पर, ग़ज़ल को रुलाया बहुत..
कभी यादों से, तो कभी ख़्वाबों से दिल बहलाया बहुत..l
यक़ीनन होंगी वजहें भी, कि सीने से धुंआ उठता रहा..
दर्दे–दिल कम ही था मगर, महफ़िल में बतलाया बहुत..।
हमारी ख़िलाफत के लिए, वो बड़े बेसब्र निकले मगर..
दुनिया जान गई कि ,जो न था वही मुद्दा उठाया बहुत..।
वो इंतेज़ार में थे कि, बयां होगा फ़साना–ए–दिल भी..
जुबां ने ही साथ न दिया, दिल ने तो मेरे उकसाया बहुत..।
अब चाहे कोई लाख इल्ज़ाम लगाए सर पर मेरे..
हमने तो हर कदम पर, अपना फ़र्ज़ निभाया बहुत..।
पवन कुमार "क्षितिज"