मैं तुम्हें साड़ी से लिपटी ,
गहनों के भर से झुकी,
जिम्मेवारियों के तले ,
घर के चार दीवारों में कैद ,
दबी हुई स्त्री नहीं लिखूंगा ।
यह तुम्हारी ललाट की बिंदी,
कानों के झुमके ,
आंखों में काजल,
पैरों में पायल,
नाक की नथुनी,
को लिखकर मैं ,
तुम्हारे चेहरे की सुंदरता का,
बखान नहीं करूंगा।
मै तुम्हे इस समाज को,
ललकारते हुए,
उनके बनाए किवदंतियों को,
ध्वस्त करते, परंपराओं को तोड़ते,
माइक से गरजते ,
तर्क –वितर्क करते ,
सड़कों पर ढ़ेर रात्रि,
बेफिक्री से सफ़र करते,
आपने ख़्वाबों के साथ,
आजाद पंछी के भांति ,
गगन में उड़ते लिखूंगा,
मै तुम्हे स्त्री लिखने से पूर्व,
एक इंसान लिखूंगा ।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







