तन्हाई लिखूँ या फिर ग़म लिखूँ,
कैसे तुम्हें खोने का मातम लिखूँ।
उम्मीदों से परे दिए हैं जो ज़ख्म,
कैसे बताऊँ, क्या-2 सितम लिखूँ।
ये जो तुम्हारे छलावे के शब्द हैं,
देते चोट, इन्हें कैसे मरहम लिखूँ।
तुमने छोड़ा मेरा साथ सफर में,
बताओ कैसे तुम्हें हमदम लिखूँ।
आँखों से बहते इन मोतियों को,
तुम ही बोलो कैसे शबनम लिखूँ।
🖊️सुभाष कुमार यादव