सावन तुम्हारा, न बरसे, तो
मेरे समीप चले आना
अपनी पलकों से झरती मोतियों से
नित्य नहलाया करूंगा
बसंत तुम्हारा न महके, तो
करीब चले आना
प्रीत सुरभित सांसों से
रोज महकाया करूंगा
उमस तुम्हारा न तपे, तो
निकट आ बैठ जाना
उड़ेल दूंगा, तन-मन की सारी तपन
नित्य झुलसाया करूंगा
हर आनंद, हर तृष्णा,हर कष्टों का
संचित निधि हूं
हर पल "एहसास" कराया करूंगा।
सर्वाधिकार अधीन है