तुम्हें जितने ज़ुल्म ढहाने है ढहा लो,
हमारा क्या ?
हमे तो एक और कविता मिल जाएगी।
जितना दगा दोगे उतना ही हम मुस्कुराएंगे,
और कलम में वही स्याही भर काग़ज़ पर चलाएंगे।
कविता के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार हैं हम,
ले लो जो भी है सब हमारा क्या ?
हमे तो एक और कविता मिल जाएगी।
जितना हमें तड़पाओगे हम उतने ही मजबूत बनेंगे,
और तुम्हारे दिए इसी दर्द को कलम में उतार
निखरते जाएंगे।
बोलो जितने भी अपशब्द बोलने है,
हमारा क्या ?
हमे तो एक और कविता मिल जाएगी।
जितना सुनाओगे हम उतने ही समझते जाएंगे,
और ख़ामोशी से, अपनी कलम को बेमिसाल बनाएंगे।
🖋️🖋️ रीना कुमारी प्रजापत
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




