पथ विहीन हूँ, लक्ष्य विहीन नहीं,
मंद मंथर है गति, गतिहीन नहीं,
एक पथिक हूँ मैं अज्ञात पथ का,
भ्रमित हूँ पथ में, दिशाहीन नहीं।
गुण श्रेष्ठ नहीं पर गुणहीन नहीं,
नगण्य ही सही, मूल्य हीन नहीं,
दरिद्र हूँ पर मानवता से परिपूर्ण,
हृदय निष्ठुर पर संवेदनहीन नहीं।
उज्ज्वल न सही पर मलिन नहीं,
सदाचारी नहीं पर चरित्रहीन नहीं,
उपेक्षित ही सही है मेरा अस्तित्व,
अनाम हूँ अभी पर नामहीन नहीं।
निराश हूँ अवश्य, आशाहीन नहीं,
प्रतीत होता कर्कश, रसहीन नहीं,
जीवनानुभूतियों से बनाया कड़वा,
स्वाद लगे अप्रिय स्वादहीन नहीं।
🖊️सुभाष कुमार यादव