कापीराइट गीत
कर्तव्य, पथ पर बैठा हूं, लेकर संकल्प नया मन में
भर जाए, फिर से, जोश नया, काश कोई मेरे मन में
हुए ख्वाब मेरे धुआं-धुआं, जब मंजिल ने भटकाया
दिल, टूटा मेरा कहां-कहां, जब किस्मत ने ठुकराया
जब-जब घेरा मुश्किल ने, कई शूल चुभे मेरे तन में
भर जाए, फिर से ..................
हुई भ्रमित जब ये दिशाएं, तब कौन दिखाए राह नई
कैसे निकलेगी तन-मन से फिर से ये कोई चाह नई
ये रोज जगाती हैं आशाएं कर के क्रंदन मेरे मन में
भर जाए, फिर से .................
घेर के बैठी है ये निराशा, मुझ को सभी दिशाओं से
देती है निराशा अब पहरा अपने मन की सीमाओं पे
उतर गए हैं ये विचार सभी मेरे मन के आंदोलन में
भर जाए, फिर से ..................
खेल रहे हैं कब से मेरे मन से लोग कई मिल कर
लेकिन कहता है ये दिल मेरा, पहुंचेंगे हम मंजिल पर
आओ हम यादव के संग, भर लें जोश जरा मन में
भर जाए, फिर से ..................
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है